बहुत से लोगों के लिए सुबह की एक कप कॉफ़ी रोज़ का छोटा लेकिन प्यारा सा रिचुअल होता है. और हम यहाँ आपसे यह कहने नहीं आए हैं कि आप इसे छोड़ दें. असल में, कम मात्रा में कैफ़ीन लेने से कई बीमारियों का खतरा कम होता है, जिसमें टाइप 2 डायबिटीज़, दिल की बीमारी और कुछ तरह के कैंसर शामिल हैं.
लेकिन अगर आपकी कैफ़ीन का सिलसिला सुबह की एक–दो कप से लेकर दोपहर की लाटे और शाम की कैप्पुचीनो तक चलता रहता है, तो ये समझना ज़रूरी है कि कैफ़ीन आपकी नींद की क्वॉलिटी पर कैसे असर डालता है.
आगे पढ़ते रहें — जानिए कैफ़ीन Oura मेम्बर्स के स्लीप डेटा पर क्या असर डालती है, बॉडी इसे कैसे प्रोसेस करती है, और कॉफ़ी का टाइमिंग ऐसा कैसे रखें कि नींद ख़राब न हो.
कैफ़ीन Oura मेम्बर्स की नींद को कैसे बदलती है
Oura मेंबर डेटा में हम देखते हैं कि जब मेंबर्स अपनी एंट्री में “कैफ़ीन” टैग करते हैं, तो उसकी तुलना में जिस दिन वे “कैफ़ीन” टैग नहीं करते, असर काफ़ी साफ़ नज़र आता है. जनवरी से जून 2025 के बीच के एग्रीगेट और डी‑आइडेंटिफ़ाइड मेंबर डेटा के मुताबिक, मेंबर्स ने ये बदलाव देखे:
- पूरी नींद में लगभग 49 मिनट की कमी
- REM स्लीप में लगभग 6.4 मिनट की कमी
- हल्की नींद में लगभग 23 मिनट की कमी
- गहरी नींद में लगभग 9.2 मिनट की कमी
- 8.2 पॉइंट्स कम स्लीप स्कोर
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कैफ़ीन आपकी स्लीप साइकल को कैसे असर डालती है
आपकी बॉडी का नाज़ुक स्लीप‑वेक साइकल, जिसे ज़्यादातर आपका 24‑घंटे वाला सर्कैडियन रिदम और उसके साथ काम करने वाला स्लीप प्रेशर सिस्टम कंट्रोल करते हैं, कैफ़ीन से बहुत ज़्यादा ख़राब हो सकता है.
कैफ़ीन आपके दिमाग को धोखा देकर ब्लड-ब्रेन बैरियर को पार करके और एडेनोसिन को ब्लॉक करके, आपको अलर्ट महसूस कराता है, जो दिमाग का एक ज़रूरी मॉलिक्यूल (न्यूरोट्रांसमीटर) है और नींद का सिग्नल देता है.
आम तौर पर जितनी देर आप जागे रहते हैं, दिमाग़ में उतना ज़्यादा एडिनोसिन जमा होता जाता है और स्लीप प्रेशर बढ़ता रहता है. एडेनोसिन रिसेप्टर्स से जुड़कर पूरे बॉडी को “अब सो जाओ!” वाले सिग्नल भेजता है. जब आप आख़िर में सो जाते हैं, तो पूरा सिस्टम रीसेट हो जाता है और एडिनोसिन लेवल फिर से नॉर्मल पर आ जाते हैं.
लेकिन जब कैफ़ीन दिमाग में जाता है, तो यह इन्हीं रिसेप्टर्स में असरदार तरीके से “फ़िट” हो जाता है, और एडेनोसिन को बनने से रोकता है. इससे आपके दिमाग़ को ऐसा लगता है कि आप कम समय से जाग रहे हैं, जिसकी वजह से आप ज़्यादा चौकन्ने और कम नींदे महसूस कर सकते हैं.


जब कैफ़ीन आख़िरकार सिस्टम से निकलने लगती है, तो आपको “कैफ़ीन क्रैश” जैसा महसूस हो सकता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जितनी एडेनोसीन पहले ब्लॉक हो रही थी, वो सब धीरे‑धीरे जमा होती रहती है, और जैसे ही कैफ़ीन क्लियर होता है, वो एक साथ उन रिसेप्टर्स से जुड़ जाती है, जिससे तेज़ नींद की लहर आ सकती है.
ये एहसास कितना तेज़ होगा और कितनी जल्दी आएगा, ये हर इंसान में अलग होता है, क्योंकि हर किसी की बॉडी से कैफ़ीन क्लियर होने की रफ़्तार अलग होती है.
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कैफ़ीन की हाफ़-लाइफ़ कैफ़ीन आपकी बॉडी में कितनी देर तक रहती है?
कैफ़ीन की हाफ़‑लाइफ़ से मतलब है कि आपकी बॉडी को आपके सिस्टम में मौजूद कैफ़ीन के आधे हिस्से को मेटाबोलाइज़ करने में कितना वक़्त लगता है — और इसे समझना रात में क्वालिटी रेस्ट लेने के लिए बहुत ज़रूरी है.
आम तौर पर कैफ़ीन की हाफ‑लाइफ़ 3 से 7 घंटे के बीच रहती है. लेकिन हर व्यक्ति अलग होता है, और कैफ़ीन की हाफ़‑लाइफ़1.5 से 9.5 घंटे तक रह सकती है, जबकि औसतन ये करीब 5 घंटे के आसपास होती है.
तो अगर आप दोपहर 3 बजे एक कप कॉफ़ी पीते हैं, तो रात 8 बजे तक आप उस कैफ़ीन का सिर्फ़ आधा हिस्सा ही मेटाबोलाइज़ कर पाते हैं — बाकी आधा अब भी आपके सिस्टम में एक्टिव घूम रहा होता है, जो आपकी नींद आने के टाइम और आपकी स्लीप आर्किटेक्चर (यानी हर स्लीप स्टेज से अच्छे से गुज़रने की क्षमता) पर असर डाल सकता है.
अगर आपकी बॉडी कैफ़ीन को धीरे प्रोसेस करती है, तो यह असर और ज़्यादा देर तक चल सकता है.
कैफ़ीन मेटाबोलिज़्म: क्या आप तेज़ी से प्रोसेस करते हैं या धीरे?
क्या आपने सोचा है कि क्यों आपका दोस्त रात के खाने के बाद भी एस्प्रेसो पीकर भी चैन से सो जाता है, जबकि आप लंच‑टाइम लट्टे पीकर भी रात भर छत ही देखते रहते हैं? कैफ़ीन झेलने की आपकी ताकत सिर्फ़ इस बात पर नहीं टिकी कि आप कितना पीते हैं, बल्कि आपकी अपनी बॉडी‑बायोलॉजी पर टिकी होती है.
जेनेटिक्स से लेकर हॉरमोन्स और लाइफ़स्टाइल तक, कई फ़ैक्टर्स ये तय करते हैं कि कैफ़ीन आपके सिस्टम में कितनी देर तक रुका रहता है और आपकी नींद पर कैसा असर डालता है:
जेनेटिक फ़ैक्टर्स
आपके जीन्स ये तय करने में अहम रोल निभाते हैं कि आपकी बॉडी कैफ़ीन को कैसे तोड़ती है. इसमें जो मुख्य जीन शामिल है वोCYP1A2 है, जो लिवर में उस एंज़ाइम की एक्टिविटी पर असर करता है जो कैफ़ीन को मेटाबोलाइज़ करने के लिए ज़िम्मेदार है. इस जीन के वैरिएंट वाले लोग कम एंजाइम बनाते हैं, मतलब कैफ़ीन को वे धीरे तोड़ते हैं. इन्हें अक्सर स्लो मेटाबोलाइज़र कहा जाता है.
लगभग आधी आबादी के पास स्लो‑मेटाबोलाइज़िंग वैरिएंट होता है, जो कैफ़ीन की हाफ़‑लाइफ़ को काफ़ी बढ़ा सकता है, कभी‑कभी 10 घंटे या उससे भी ज़्यादा तक.
दूसरी तरफ़, फ़ास्ट मेटाबोलाइज़र कैफ़ीन को जल्दी तोड़ते हैं, सिस्टम से तेज़ी से साफ़ करते हैं और दिन के आख़िर में कॉफ़ी पीने पर नींद से जुड़े कम साइड इफ़ेक्ट्स झेलते हैं.
अपनी जेनेटिक कैफ़ीन सेंसिटिविटी समझना सिर्फ़ नींद के लिए ही नहीं, बल्कि बड़े स्वास्थ्य नतीजों से भी जुड़ा है. रिसर्च कहती है कि स्लो मेटाबोलाइज़र को ज़्यादा मात्रा में कैफ़ीन लेने पर, ख़ासकर कॉफ़ी से, कार्डियोवैस्कुलर रिस्क बढ़ सकता है.
हार्मोन, बर्थ कंट्रोल और कैफ़ीन के नींद पर असर
हॉर्मोन आपके बॉडी में कैफ़ीन के प्रोसेस पर काफ़ी असर डाल सकते हैं.
पीरियड्स साइकल
महिलाओं में एस्ट्रोजन CYP1A2 एंजाइम को रोककर कैफ़ीन मेटाबोलिज़्म को धीमा कर देता है. इसका मतलब पीरियड्स साइकल साइकल के कुछ वक़्त — ख़ासतौर पर ल्यूटियल फ़ेज़ में जब एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन ज़्यादा होते हैं — कैफ़ीन बॉडी में ज़्यादा देर ठहर सकती है और नींद पर ज़्यादा असर डाल सकती है.
| मेंबर टिप: अपना साइकल हर फेज़ में बेहतर समझने के लिए Oura की साइकल से जुडी जानकारीपर नज़र रखें. |
बर्थ कंट्रोल
यह असर उन लोगों में और भी ज़्यादा दिखता है जो ओरल गर्भनिरोधक ले रहे हैं. स्टडीज़ बताती हैं कि हॉर्मोनल बर्थ कंट्रोल लेने वाली महिलाओं में कैफ़ीन की हाफ़-लाइफ़ दोगुनी तक हो सकती है—यानी सामान्य 5–7 घंटे से बढ़कर कभी-कभी 10 घंटे से ऊपर तक. इसी वजह से दोपहर में ली गई थोड़ी सी कैफ़ीन भी आपकी नींद बिगाड़ सकती है.
प्रेगनेंसी
प्रेगनेंसी भी एक अहम हॉर्मोनल स्टेट है जो कैफ़ीन मेटाबोलिज़्म को बदल देती है. प्रेगनेंसी के दौरान, ख़ासकर तीसरे ट्राइमेस्टर में, बॉडी से कैफ़ीन क्लियर होना काफ़ी धीमा हो जाता है. इस समय कैफ़ीन की हाफ़-लाइफ़ 11–18 घंटे तक पहुँच सकती है, जिससे इसका स्टिम्युलेटिंग असर भी बढ़ जाता है और प्रेग्नेंसी में होने वाले बेबी की ग्रोथ पर असर का जोखिम भी बढ़ सकता है इसी लिए प्रेगनेंसी में दिनभर में लगभग 200 mg कैफ़ीन तक की ही सलाह दी जाती है.
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बाकी फ़ैक्टर
जेनेटिक्स और हार्मोन्स के अलावा, कुछ और फ़ैक्टर्स भी हैं जो ये तय करते हैं कि आपकी बॉडी कैफ़ीन को कितनी तेज़ी से मेटाबोलाइज़ करेगी:
| फ़ैक्टर | मेटाबोलिज़्म पर असर |
| उम्र | कैफ़ीन मेटाबॉलिज़्म धीरे होने लगता है उम्र बढ़ने के साथख़ासकर उम्रदराज़ लोगों में. |
| लिवर फ़ंक्शन | लिवर की बीमारी या लिवर फ़ंक्शन का कमज़ोर होना, बॉडी में कैफ़ीन के टूटने के प्रोसेस को स्लो कर देता है. |
| स्मोकिंग | CYP1A2 एंजाइम की एक्टिविटी बढ़ा देती है, जिससे बॉडी से कैफ़ीन क्लियरेंस लगभग 50% तक तेज़ हो सकता है. |
| डाइट | क्रूसिफ़ेरस सब्जियां (जैसे ब्रोकोली, केल) CYP1A2 की एक्टिविटी बढ़ा सकती हैं. |
| दवाऍं | कुछ दवाइयाँ (जैसे फ़्लूलुवॉक्सामीन, सिमेटिडीन) कैफ़ीन मेटाबॉलिज़्म को धीमा कर देती हैं, जबकि कुछ दवाइयाँ इसे तेज़ भी कर देती हैं. |
| शराब का सेवन | शराब CYP1A2 एक्टिविटी कम करके कैफ़ीन मेटाबोलिज़्म को स्लो कर देता है. स्टडीज़ के मुताबिक, दिन में लगभग 50 ml शराब लेने से कैफ़ीन की हाफ़-लाइफ़ करीब 72% तक बढ़ सकती है और बॉडी से कैफ़ीन क्लियरेंस लगभग 36% तक कम हो जाती है. |
| क्रॉनिक स्ट्रेस | स्ट्रेस बॉडी के स्ट्रेस रिस्पॉन्स सिस्टम, ख़ासकर HPA ऐक्सिस को बिगाड़ सकता है, जिससे कॉर्टिसॉल प्रोडक्शन बढ़ जाता है. ये सब मिलकर बॉडी में कैफ़ीन के प्रोसेस होने के तरीके को बदल सकता है, जिससे इसका असर ज़्यादा देर तक रह सकता है या और भी तेज़ महसूस हो सकता है. |
बेहतर नींद के लिए कैफ़ीन कब बंद करें

कैफ़ीन कब तक पीना बंद करना चाहिए इसका एक जैसा जवाब सबके लिए नहीं होता, लेकिन टाइमिंग आपकी सोच से ज़्यादा मायने रखती है. क्योंकि कैफ़ीन की हाफ़‑लाइफ़ आम तौर पर 5 से 7 घंटे होती है (और स्लो मेटाबोलाइज़र्स में इससे भी ज़्यादा), इसलिए शाम के क़रीब पी गई लट्टे सोने के समय तक भी आपके सिस्टम में रह सकती है, जिससे नींद आने में दिक्कत हो सकती है और नींद की क्वॉलिटी भी गिर सकती है.
स्लीप रिसर्चर्स और क्लीनिशियन्स आम तौर पर सोने के समय से कम से कम 8–10 घंटे पहले कैफ़ीन बंद करने की सलाह देते हैं.. ज़्यादातर लोगों के लिए, इसका मतलब है कि दोपहर 2 बजे के बाद कोई कैफ़ीन नहीं—और अगर आप बहुत सेंसिटिव हैं या नींद आने में परेशानी होती है, तो और भी जल्दी.
कैफ़ीन की छोटी सी मात्रा (जैसे डार्क चॉकलेट का एक पीस या एक ग्रीन टी) भी आपकी बॉडी की एडेनोसीन बनाने और उसको रिस्पॉन्ड करने की क्षमता में दख़ल दे सकती है, जो दिन भर स्लीप प्रेशर बनाने वाला मॉलीक्यूल है.
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Oura के साथ कैफ़ीन के असर को ट्रैक करें: बेहतर आराम के लिए मेट्रिक्स
Oura के साथ, आप देख सकते हैं कि कैफ़ीन की थोड़ी सी मात्रा भी आपकी नींद और रिकवरी पर कैसे असर डालती है, अहम मेट्रिक्स पर नज़र रखकर.
शुरुआत करें Oura ऐप में टैग्स इस्तेमाल करके, ताकि आप लॉग कर सकें कि आपने कैफ़ीन कब‑कब लिया. कुछ समय बाद आपको दिखने लगेगा कि आपकी बॉडी कैसे रिस्पॉन्ड करती है, ख़ासकर जब आप दिन के बाद वाले हिस्से में कैफ़ीन लेते हैं.
यहाँ कुछ स्लीप और रिकवरी मेट्रिक्स हैं जिन पर नज़र रखना फ़ायदेमंद रहेगा:
- रेस्टिंग हार्ट रेट (RHR): कैफ़ीन आपका नर्वस सिस्टम स्टिम्युलेट कर देती है और आपका RHR ऊपर ले जा सकती है, जिसकी वजह से बॉडी का शांत होकर रिलैक्स मोड में आ पाना मुश्किल हो जाता है. आपको रात भर औसत RHR ज़्यादा दिख सकता है या ये अपने सबसे निचले पॉइंट तक देर से पहुँच सकता है.
- सोने में देरी: अगर आपको सोने में रोज़ाना से ज़्यादा समय लगता है, तो इसकी वजह कैफ़ीन हो सकती है—ख़ासकर अगर इसे दोपहर या शाम को लिया गया हो.
- जागने का समय और स्लीप एफ़िशिएंसी: कैफ़ीन की वजह से रात में बार-बार नींद खुल सकती है, जिससे आपकी ओवरऑल स्लीप एफ़िशिएंसी कम हो जाती है और अगले दिन आप सुस्त और थका-थका महसूस करते हैं.
- HRV (हार्ट रेट में उतार-चढ़ाव): कैफ़ीन जैसा स्टिमुलेंट आपके HRV को कम कर सकता है, जो रिकवरी और पैरासिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम की एक्टिविटी का मार्कर है.
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